इम्पोटेन्ट का मतलब क्या है?
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इम्पोटेन्ट (Impotent)/नपुंसक– यह शब्द सुनते ही लोगों के मन में डर, शर्म और घबराहट होने लगती है। वैसे तो इस शब्द के कई मतलब होते हैं,पर अगर बात सेक्शुअल हेल्थ (Sexual health) के बारे मे हो रही हो तो यह शब्द अकेला ही रिश्तों में दूरियां और तनाव लाने के लिए काफी होता है। क्योंकि सेक्स और मर्दानगी जैसे शब्द हमारे समाज में वैसे भी बहुत सारी गलतफहमियों, शर्म और चुप्पी के साथ जुड़े होते हैं। और ऐसे में ‘impotent’ का मतलब और भी गहरा असर डाल सकता है। लेकिन क्या इसका मतलब सच में इतना डरावना है? या यह सिर्फ एक ऐसी समस्या है, जिसका समाधान आज हमारे पास उपलब्ध है?
तो चलिए, इस लेख में हम बात करते हैं कि इसका क्या मतलब है, यह शब्द कहाँ से आया है, और इससे कैसे निपटा जा सकता है।
इम्पोटेन्ट (Impotent) का मतलब क्या होता है?
यह शब्द लैटिन भाषा से आया है जिसका मतलंब होता है— जिसमें शक्ति/ताकत न हो [1]। हिन्दी में इसको ‘नपुंसक’ कहते हैं। आम भाषा में इम्पोटेन्ट शब्द का इस्तेमाल उस चीज के लिए किया जाता है जिसमे किसी चीज को बदलने की कोई ताकत नहीं होती [2]। शुरुआत में यह शब्द सिर्फ राजनीतिक और शारीरिक कमज़ोरी को बताने के लिए इस्तेमाल होता था। लेकिन समय के साथ इसका इस्तेमाल खासतौर पर यौन कमजोरी (ईडी) को लेकर होने लगा, और धीरे-धीरे समाज में इस शब्द के साथ शर्म और हीन भावना जुड़ गई। पर सच बात तो यह है कि ‘इम्पोटेन्ट’ होना किसी की मर्दानगी पर सवाल नहीं है। यह एक मेडिकल कंडीशन (बीमारी) है जिसमे पुरुष को लिंग में तनाव (इरेक्शन) पाने या बनाए रखने मे दिक्कत होती है, जिसे आज हम स्तंभन दोष/इरेक्टाइल डिस्फंक्शन/ईडी के नाम से जानते हैं। इसकी मुख्य वजहें हैं:
- टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन मे गड़बड़ी
- खून के बहाव मे दिक्कत
- बहुत ज्यादा तनाव
- खराब जीवनशैली
- बढ़ती उम्र
- डायबिटीज़ [3]
एक अध्ययन के मुताबिक, 20 से 29 वर्ष की आयु तक 6% पुरुष, जबकि 40 से 79 वर्ष की आयु तक करीब 70% पुरुषों को यह परेशानी हो सकती है [4]।
क्या शीघ्रपतन (PE) और बांझपन (इनफर्टिलिटी) को भी इम्पोटेन्स माना जाता है?
बहुत से लोगों की ऐसी सोच होती है कि कोई पुरुष अगर सेक्स के दौरान जल्दी स्खलित हो जाता है (शीघ्रपतन/प्रीमैच्योर ईजैक्यूलैशन) या अगर उसके अंदर पिता बनने की काबिलियत नहीं है, तो वह नपुंसक है। लेकिन ऐसा नहीं है। मेडिकल भाषा मे इम्पोटेन्स का मतलब सिर्फ इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (ईडी) ही होता है।
शीघ्रपतन एक यौन समस्या तो है,लेकिन ये इरेक्शन से जुड़ी समस्या नहीं है। लेकिन आम बोलचाल में इसे भी नपुंसकता का हिस्सा मान लिया जाता है, जो कि पूरी तरह से गलत है। एक मेडिकल अध्ययन के अनुसार, शीघ्रपतन (Premature Ejaculation) को आज एक अलग यौन समस्या के रूप में पहचाना जाता है, जिसका इलाज और कारण इरेक्टाइल डिस्फंक्शन से अलग होता है [5]।
इसी तरह बांझपन (इनफर्टिलिटी) की समस्या भी अक्सर वीर्य की गुणवत्ता (स्पर्म क्वालिटी), उनकी संख्या, गति या जल्दी स्खलन से जुड़ी होती है,न कि इरेक्शन से। अगर किसी पुरुष को नियमित रूप से इरेक्शन होता है, लेकिन वह संतान पैदा नहीं कर पाता, तो उसे बांझ (infertile) कहा जाता है, इम्पोटेन्ट नहीं। हालांकि कुछ शोधों में यह पाया गया है कि जिन पुरुषों को इरेक्टाइल डिस्फंक्शन होता है, उनके वीर्य की गुणवत्ता (Semen Quality) भी कम हो सकती है [6], फिर भी यह जरूरी नहीं कि इरेक्शन की दिक्कत होने का मतलब बांझपन भी हो।
दरअसल, इरेक्टाइल डिस्फंक्शन और इनफर्टिलिटी दो अलग-अलग समस्याएं हैं, जिनके कारण और इलाज अलग होते हैं। लेकिन समाज इन्हे एक ही नजरिए से देखता है।
क्या महिलाओं में भी ‘इम्पोटेन्ट’ जैसा कुछ होता है?
अक्सर हम जब भी इंपोटेंस या नपुंसकता की बात करते हैं, तो ज़्यादातर लोगों को लगता है कि ये सिर्फ मर्दों की ही समस्या होती है। लेकिन सच्चाई तो ये है कि सेक्स से जुड़ी परेशानियाँ महिलाओं को भी होती हैं। बस महिलाओं क लिए नपुंसक शब्द का इस्तेमाल नहीं होता। उनके लिए हम सेक्शुअल डिस्फंक्शन (sexual dysfunction) शब्द का इस्तेमाल करते हैं, और ये परेशानियाँ महिलाओं में काफी आम हैं, जैसे-
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- सेक्स के दौरान दर्द या जलन
- यौन इच्छा का कम हो जाना (low libido)
- सेक्स को लेकर डर या नकारात्मक सोच
- उत्तेजना महसूस न होना या ऑर्गैज़्म न हो पाना
- वैजिनिज्मस– योनि में पेनिट्रेशन के दौरान दर्द होना
एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 30–50% महिलाओं को जीवन में कभी न कभी सेक्शुअल डिस्फंक्शन का अनुभव होता है [7], लेकिन शर्म या जानकारी की कमी के कारण वे मदद नहीं लेतीं। ये सारी चीजें न सिर्फ महिलाओं के यौन जीवन पर असर डालती हैं, बल्कि ये उनके रिश्ते मे भी दूरियाँ ला देती हैं। लेकिन घबराइए मत, आज इन सभी परेशानियों का इलाज संभव हैं।

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इम्पोटेन्ट शब्द का पुरुष और उनके पार्टनर पर असर
- मर्दानगी और आत्मसम्मान पर गहरी चोट लगती है।
- खुद को नाकाम और बेकार महसूस करने लगते हैं।
- शर्म और डर के कारण डॉक्टर या पार्टनर से बात नहीं कर पाते।
- ईडी (इरेक्टाइल डिस्फंक्शन) को कमजोरी मान लिया जाता है, जबकि यह इलाज योग्य है।
रिश्ते और पार्टनर पर असर
- पार्टनर खुद को दोषी मानने लगते हैं [8]।
- उन्हें लगता है कि आकर्षण या रिश्ता कमजोर हो गया है।
- इससे रिश्तों में तनाव और दूरी बढ़ सकती है।
“इस शब्द के साथ जुड़ी शर्म असल परेशानी से भी ज़्यादा नुकसान करती है। जब आप खुलकर बात करते हैं, तभी इलाज की सही शुरुआत होती है।”
इम्पोटेन्स का इलाज कैसे करें
बहुत से मामलों में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (ED) का इलाज संभव होता है। आज कई तरह के प्रभावी इलाज मौजूद हैं, जो यौन क्षमता (सेक्शुअल कैपबिलटी) को दोबारा सामान्य बना सकते हैं। बस इसके लिए आपको अलग अलग तरीके के इलाजों को आजमाना पड़ेगा की आपके लिए क्या काम कर रहा है।
- काउंसलिंग:
कई बार इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (ईडी) की वजह शारीरिक नहीं, मानसिक कारण होते हैं — जैसे तनाव, चिंता, प्रदर्शन को लेकर चिंता या कोई पुराना अनुभव। ऐसे में सिर्फ दवा ही नहीं, बातचीत और समझ भी उतनी ही ज़रूरी होती है। अगर किसी पुरुष को सेक्स को लेकर घबराहट, बेचैनी, या तनाव हो रहा है, तो एक प्रशिक्षित काउंसलर या साइकोलॉजिस्ट के साथ बात करना बेहद फायदेमंद हो सकता है।
कपल्स काउंसलिंग: अगर ईडी की वजह से रिश्ते में दूरी या गलतफहमी आ गई है, तो कपल्स थेरेपी मदद कर सकती है। एक अध्ययन में 94% पुरुषों ने माना कि ईडी से जूझते समय उनके पार्टनर का साथ उनके लिए बेहद ज़रूरी था [9]।। यह थेरेपी दोनों को एक-दूसरे की भावनाएं समझने, बातचीत बेहतर करने और नज़दीकी फिर से जोड़ने में मदद करती है।
- जीवनशैली में बदलाव: अपनी जीवनशैली में थोड़े से बदलाव लाके आप ईडी की समस्या को काफी हद तक काम कर सकते हैं [10], जैसे —
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- एक्सर्साइज़ करें: रोजाना 30 मिनट की एक्सर्साइज़ जिससे आपका हार्ट रेट बढ़े, कीगल एक्सर्साइज़ेस जो पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों को मजबूत बनाती हैं ईडी के लिए काफी फायदेमंद होती हैं [11]।
- स्मोकिंग/शराब पीना कम करें या बंद करें: ये दोनों चीज़ें नसों और खून के बहाव को नुकसान पहुंचा सकती हैं, जिससे ईडी की समस्या बढ़ती है।
- नींद पूरी लें: अच्छी नींद हार्मोन बैलेंस और एनर्जी के लिए ज़रूरी है।
- संतुलित आहार लें: पौष्टिक खाना आपके शरीर और खून के बहाव दोनों के लिए फायदेमंद होता है।
- तनाव कम लें: मेडिटेशन (ध्यान), योग या बातचीत से तनाव कम करें [12], क्योंकि दिमाग का असर सीधा यौन सेहत पर पड़ता है।
इम्पोटेन्स का मेडिकल इलाज
इसके लिए कई मेडिकल इलाज उपलब्ध हैं, लेकिन कौन-सा इलाज सबसे बेहतर रहेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि परेशानी की जड़ क्या है। इसलिए डॉक्टर से मिलकर जांच करवाना और दोनों पार्टनर्स का मिलकर इलाज के विकल्पों को समझना बहुत ज़रूरी होता है।
- बिना सर्जरी वाले इलाज (non-invasive treatment)
मेडिकल इलाज में सबसे पहले कोशिश ये की जाती है की सर्जरी की जरूरत न पड़े। इसमें आती हैं-
- दवाइयाँ: जैसे- सिल्डेनाफिल (वायग्रा) [13]। ये खून का बहाव बढ़ाने में मदद करती हैं।
- इन्जेक्शन: इन्हे सीधे लिंग मे लगाया जाता है।
- यूरेथ्रा (पेशाब की नली) में डाली जाने वाली सपोसिटरी: छोटी गोली जैसी दवा जो पेशाब के मार्ग में डाली जाती है, ताकि इरेक्शन हो सके।
- टेस्टोस्टेरोन थेरेपी: अगर शरीर में टेस्टोस्टेरोन (पुरुष हार्मोन) की कमी है, तो यह थेरेपी दी जाती है।
- वैक्यूम पंप डिवाइस: एक ऐसा उपकरण जो लिंग में खून भरकर अस्थायी रूप से इरेक्शन बनाए रखने में मदद करता है।
अगर ईडी किसी और दवा के साइड इफेक्ट की वजह से हो रही है, तो डॉक्टर उस दवा को बदलने का सुझाव भी दे सकते हैं। लेकिन कोई भी दवा खुद से बंद या शुरू न करें — हमेशा डॉक्टर से सलाह ज़रूरी है।
- सर्जरी: जब सारे ही विकल्प फायदा न करें, तो डॉक्टर सर्जरी की सलाह दे सकते हैं।
- पेनाइल इम्प्लांट सर्जरी: इसमें डॉक्टर लिंग के अंदर एक इम्प्लांट (डिवाइस) लगाते हैं, जिससे सेक्स के दौरान लिंग सख्त बना रहता है।
यह दो तरह के होते हैं:
इन्फ्लैटेबल इम्प्लांट्स: जिन्हें ज़रूरत के समय पंप करके सख्त किया जा सकता है। पंप स्क्रोटम (अंडकोष के थैले) में लगाया जाता है।
सेमी रिजिड इम्प्लांट्स: जो हमेशा थोड़े सख्त रहते हैं, जिससे इरेक्शन की ज़रूरत न भी हो तो भी आकार बना रहता है। - आर्टरीज़ (धमनियों की सर्जरी): अगर समस्या खून के बहाव की है, तो कुछ मामलों में आर्टरीज़ की मरम्मत करके भी फायदा मिल सकता है।
‘इम्पोटेन्ट’ शब्द ने समाज में जितनी शर्म और डर पैदा किया है, उतनी शायद खुद इस समस्या ने भी नहीं की। लेकिन सच्चाई यह है कि इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (ED) एक मेडिकल कंडीशन है, न कि किसी की मर्दानगी का टेस्ट। इसका इलाज मौजूद है। बेहतर ज़िंदगी और बेहतर रिश्तों की शुरुआत उसी पल होती है जब आप डर की बजाय समझदारी से कदम उठाते हैं। चाहे वजह मानसिक हो या शारीरिक, दवाओं से लेकर थेरेपी तक, आज हर तरह की मदद उपलब्ध है। तो अगर आप या आपका कोई अपना इससे जूझ रहा है, याद रखें: कमज़ोरी चुप रहने में है, और हिम्मत मदद मांगने मे है।
